कानून के पालक पुलिस वालों को विधानसभा ने दी कारावास की सजा
विधानसभा ने दी छह दोषी पुलिस कर्मियों को एक दिन के करावास की सजा
राज्य ब्यूरो,लखनऊ
। उत्तर प्रदेश की 18 वीं विधानसभा के बजट सत्र में आज शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक बन गया है। विधानसभा सदन ने न्यायालय के रूप में प्रक्रिया का निर्वहन करते हुए विधायक के खिलाफ अवमानना करने वाले एक क्षेत्राधिकारी समेत छह पुलिस कर्मियों को एक दिन कारावास की सजा सुनायी। यह सजा विशेषाधिकार हनन समिति ने जांच उपरांत मुकर्रर की थी। समिति के निर्णय पर मुख्य विपक्ष समाजवादी पार्टी को छोंड़ कर सदन में सभी अन्य दलों ने अपनी सहमति प्रदान की। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के निर्देश पर सभी दोषियों को विधानसभा के कारागार में बने लॉकअप में भेज दिया गया, साथ ही लॉकअप में भोजन, पानी इत्यादि जरूरत की चीजों को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए।
कटघरे के लाए गए अपराधी पुलिस वाले
रोजाना की तरह चल रहा प्रश्नकाल के बाद विधानसभा सदन का माहौल दोपहर 12.25 बजे अचानक बदल गया। संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना के प्रस्ताव पर अध्यक्ष सतीश महाना के निर्देश पर मार्शल द्वारा छह दोषी पुलिस अधिकारियों को सदन में बने अस्थाई कटघरे में पेश किया गया। इसके बाद संसदीय कार्य मंत्री ने साल 15 सितम्बर 2004 में भाजपा विधान परिषद सदस्य सलिल विश्नोई के साथ कानपुर में घटित घटना का वर्णन करते हुए, दोषियों को एक दिन अर्थात शुक्रवार की रात 12 बजे तक कारावास की सजा देने का प्रस्ताव पेश किया, जिसे भी ध्वनि मत से पारित कर दिया गया।
व्यक्ति अच्छे हैं मगर कृत्य के लिए सजा जरूरी है
इसके बाद सुरेश खन्ना ने कहा कि मानता हूं कि प्रशासन, शासन के निर्देशों पर कार्य करता है, मगर किसी को अशोभनीय व्यवहार दूसरे के साथ अभद्रता करने का अधिकार नहीं मिलता है। इन पुलिस कर्मियों का व्यवहार निंदनीय है, लेकिन संविधान में संवेदनशीलता को न्याय से ज्यादा महत्व दिया गया है इसलिए दोषी पुलिस कर्मियों को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए, इसके बाद तत्कालीन क्षेत्राधिकारी(वर्तमान में सेवानिवृत्त)अब्दुल समद ने अपने सभी सार्थियों की ओर से घटना के लिए सदन और तत्कालीन विधायक सलिल विश्नोई से माफी मांगी।
उन्होंने कहा, हाथ जोड़कर सरकारी कर्तव्यों के पालन करने के दौरान जाने-अनजाने में हुई गलती के लिए माफी मांगते हैं।
पुलिस कर्मियों द्वारा विनम्रता पूर्वक माफी मांगने के बाद, संसदीय कार्यमंत्री ने कहा अधिकारियों को सरकार के आदेश का पालन करना जरूरी है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह किसी जनप्रतिनिधि के साथ मारपीट करें और उनका अपमान करें।
निर्देश मिलने के बाद दूसरों का साथ अभद्रता तो नही करनी चाहिए
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि जनप्रतिनिधियों के मान सम्मान की रक्षा करना सदन का कर्तव्य है। दोषी पुलिसकर्मियों ने जो किया वह उनके अधिकार से परे है जिसने सदन को मामले पर विचार करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने यह भी बताया कि पिछली विशेषाधिकार समिति ने निलंबन सहित कड़ी सजा की सिफारिश की थी। इसके बाद कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने सजा मामले पर विचार करने के बाद उनकी सजा को एक दिन के बजाय कुछ घंटों के लिए कम किया जाने का प्रस्ताव दिया, मगर पूरे सदन ने एकमत से खारिज कर दिया। सुरेश खन्ना ने कहा कि एक बार अध्यक्ष द्वारा फैसला सुना दिये जाने के बाद उस पर फिर से विचार करने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बाद मार्शलों को पूर्व सीओ व पांचों पुलिसकर्मियों को विधान भवन में बंद करने का निर्देश दिया।
क्या है मामला
विधान परिषद सदस्य सलिल विश्नोई ने बताया कि 2004 में बिजली कटौती के विरोध में वह जिलाधिकारी को ज्ञापन देने जा रहे थे मगर रास्ते में पुलिसकर्मियों ने उन्हे बलपूर्वक रोका जिससे उनके पैर में कई फ्रैक्चर हुए थे। मुख्यमंत्री और राज्यपाल को भी घटना से अवगत कराया था, मगर पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज नहीं की। इसके बाद उन्होंने घटना की शिकायत तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत की, मेरी शिकायत विशेषाधिकार समिति को सौंप दी थी। इस सजा से दूरगामी संदेश जाएगा कि विधायक, विधायिका और विधानसभा का सम्मान किया जाना चाहिए।
सजा पाने वाले दोषी पुलिस अधिकारी
दोषी पुलिसकर्मियों में कानपुर नगर के बाबूपुरवा के तत्कालीन क्षेत्राधिकारी अब्दुल समद, किदवईनगर के तत्कालीन थानाध्यक्ष रिशिकांत शुक्ला, थाना कोतवाली के तत्कालीन उपनिरीक्षक त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कास्टेबिल छोटे सिंह यादव, विनोद मिश्र व मेहरबान सिंह यादव शामिल थे।
सपा नदारद रही न्यायालय से
न्यायिक प्रक्रिया में सपा सदस्य सदन के अंदर प्रत्यक्षदर्शी नहीं रहें। न्यायालय शुरू होने से पहले ही सपा के अखिलेश यादव , मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा समाजवाद पर की गयी टिप्पणी से अंसतुष्ट होकर सदन से वाकआउट कर गए थे।