गांधी की प्रतिमा पर फूटा पत्रकारों का गुस्सा, मुख्यमंत्री आवास को किया कूच,रोके गए

चार दिन, जीरो गिरफ्तारी,लखनऊ पुलिस की स्पीड घोंघा एक्सप्रेस से भी धीमी
अपराधियों का आत्मविश्वास आसमान पर, पुलिस का मनोबल जमीन के नीचे
अपराधी मिसिंग पुलिस साइलेंट,सत्ता की सरपरस्ती में सच फिर घायल
लखनऊ। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पत्रकार सुशील अवस्थी पर हुए जानलेवा हमले को चार दिन बीत चुके हैं, लेकिन पुलिस की रफ्तार अब भी घोंघा एक्सप्रेस से आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रही। अपराधी खुले आसमान में टहल रहे हैं और शासन-प्रशासन मानो किसी गहरी तंद्रा में लिपटा बैठा है। पत्रकार पर वार हुआ, पर शर्म अब भी प्रशासन के दरवाजे तक नहीं पहुँची। न्याय लापता है, पुलिस बहानों की खोज में व्यस्त और अधिकारी चुप्पी की चादर ओढ़े बैठे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार प्रभात त्रिपाठी ने कहा, सत्ता की सरपरस्ती में सच फिर घायल है, और लखनऊ पूछ रहा है,आखिर कब जागेगा सिस्टम ? अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं और सिस्टम अपनी पुरानी सुस्त लय में जैसे किसी गहरी नींद से जागने का नाम ही नहीं ले रहा। इसी लापरवाही के खिलाफ आज लखनऊ के सैकड़ों पत्रकार सड़कों पर उतर आए। हजरतगंज की गांधी प्रतिमा पर धरना-प्रदर्शन शुरू हुआ तो लगा कि शायद वरिष्ठ अधिकारियों को झटका लग जाएगा, लेकिन आश्चर्य की बात यह कि गांधी जी जागे, भीड़ जागी, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ उबल पड़ा,पर अधिकारी नहीं पहुंचे। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की अनुपस्थिति ने पत्रकारों के गुस्से में और भी आग भर दी।

देखते ही देखते प्रदर्शनकारियों का कारवां मुख्यमंत्री आवास की ओर बढ़ चला। पुलिस ने बीच-बीच में रोकने की कोशिश की, समझाने की कोशिश की, लेकिन पत्रकारों का सवाल सिर्फ एक हमलावर कहाँ हैं ? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था, इसलिए जत्था आगे बढ़ता रहा।
आखिरकार पुलिस ने राजभवन कॉलोनी चौराहे पर बैरिकेडिंग लगाकर प्रदर्शन को रोका। यहां भी पत्रकारों का आक्रोश नहीं थमा, सड़क पर नारेबाजी और जमकर विरोध का मंच बन गई। तब प्रशासन की नींद तब टूटी, तब वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पंकज दीक्षित मौके पर पहुंचे और आश्वासन दिया, हमलावर जल्द गिरफ्तार होंगे और गंभीर धाराओं में कार्रवाई की जाएगी।
इस आश्वासन पर पत्रकारों ने प्रदर्शन समाप्त तो कर दिया, लेकिन चेतावनी भी उतनी ही कड़ी दी। यदि अपराधी जल्द सलाखों के पीछे नहीं भेजे गए, तो इस बार केवल लखनऊ नहीं, पूरा प्रदेश खड़ा होगा। मुख्यमंत्री आवास का घेराव फिर होगा और इस बार कहीं बैरिकेडिंग भी काम नहीं आएगी। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक चला यह जोरदार विरोध प्रदर्शन सिर्फ एक संदेश देकर गया। पत्रकार पर हमला, सिर्फ एक व्यक्ति पर वार नहीं, यह लोकतंत्र की रीढ़ पर चोट है।
अब पत्रकारों की नजरें सिर्फ एक बात पर टिकी हैं,क्या यूपी पुलिस ये चोट समझेगी, या अपराधियों के साथ मिलकर सिस्टम ही गायब हो जाएगा।
