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लाइलाज नही है ब्रेन स्ट्रोक, समय से पहुंचना होता है चिकित्सक के पास

खून आपूर्ति अवरोध को खत्म करने वाली दवाएं देनी होती है ब्रेन स्ट्रोक मरीजों को


लखनऊ। ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन हेमरिज, वह बीमारियां है जो सामान्य रूप से जीवन व्यतीत कर रहें व्यक्ति का जीवन कभी भी संकट में डाल सकता है। ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों को पहचानना भी आसान है, मगर फिर भी लोग बीमारी के इलाज में गोल्डन आवर घर पर ही व्यतीत करने के बाद अस्पताल पहुंचते हैं। अगर समय पर ब्रेन स्ट्रोक की दवाएं टीपीए (टिश्यू प्लाजमाइनोजेन एक्टीवेटर) मिल जाये तो मरीज पूर्णतया ठीक हो जाता है। यह बात रविवार को संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो.संजीव झा ने दी।

विश्व ब्रेन स्ट्रोक जागरूकता दिवस के अवसर पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम में प्रो.झा ने बताया कि ब्रेन अटैक और ब्रेन हेमरिज दोनों में अंतर है। जब मस्तिष्क को खून आपूर्ति करने वाली नस खून की सप्लाई कम करे तो उसे छोटा ब्रेन अटैक कहते हैं। जब नस ब्लाक हो जाए तो उसे एस्केमिक यानी ब्रेन अटैक (ब्रेन स्ट्रोक)कहते हैं और जब दिमाग की नस फट जाए तो उसे ब्रेन हेमरिज कहते हैं। ब्रेन हेमरिज उन लोगों में ज्यादा होने की संभावनाए होती हैं, जिनका बीपी अनकंट्रोल होता है। खास तौर पर सुबह चार बजे। इस दौरान लोगों का सबसे ज्यादा बीपी हाई होता है। बताया कि मधुमेह, हाई बीपी, हृदय रोगी, डिस्लिपिडेमिया, मोटापा, तनाव, धूम्रपान और तंबाकू का उपयोग खतरों को बढ़ाते हैं।

ब्रेन स्ट्रोक विषयक जागरूकता कार्यक्रम संजय गांधी पीजीआई में संपन्न

उन्होंने ब्रेन स्ट्रोक इलाज में बताया कि नये शोधों से इमरजेंसी में मस्तिष्क को खून पहुंचाने वाली नस में रूकावटों को खोलना संभव हो चुका है। अवरोध खत्म करने के लिए शुरुआती 3-4 घंटों में (गोल्डन आवर) क्लॉट बस्टर दवाएं या क्लॉट रिट्रीवर्स उपकरण का उपयोग करना होता है। चूंकि इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं इसलिए विशेषज्ञ चिकित्सक के पास हर हाल में पहुंचना चाहिये। पीजीआई न्यूरोलॉजी विभाग में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में कार्यवाहक निदेशक प्रो.एसपी अंबेष, इमरजेंसी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ.आर के सिंह,एपेक्स ट्रामा सेंटर प्रमुख प्रो.राज कुमार, अस्पताल प्रशासन के डॉ.आर हर्षवर्धन ने स्ट्रोक से बचने के तरीके बताये। प्रो.वीके पालीवाल,डॉ.विनीता एलिजाबेथ मणि ने संचालन किया।

कैसे पहचाने ब्रेन स्ट्रोक

ब्रेन स्ट्रोक पहचानने में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.गौरव अग्रवाल का कहना है कि अक्सर मरीज को ब्रेन स्ट्रोक का अहसास नही होता है, जिसकी वजह से इलाज में देर हो जाती है। देर होने की वजह से मरीज में लकवा या विकलांगता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। उन्होंने कहा, ब्रेन स्ट्रोक की पहचान में इंग्लिश के बीफास्ट (बीईएफएएसटी) का महत्व है।

  • बी का मतलब व्यक्ति बैलेंस (शरीरिक संतुलन)खोने लगे ।
  • ई यानि आई (आंख) में धुंधलापन या दृष्टिदोष उत्पन्न हो।
  • एफ का अर्थ है फेस(चेहरा) मुस्कुराने पर मरीज को चेहरे को एक हिस्सा झुकते दिखे।
  • ए का मतलब आर्म (दोनो हाथ) ऊपर उठाने पर किसी एक हाथ में कमजोरी का अहसास होता है।
  • एस से होता है स्पीच(बोलना), हकलाहट या बोलने में असमर्थता आने लगती है।
  • टी – टाइम (समय) कोई लक्षण प्रतीत होने पर तुरंत नजदीकी अस्पताल जाएं। ऐसे अस्पताल पहुंचे जहां सी टी स्कैन और स्ट्रोक के इलाज की सुविधा हो।

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