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बीडीएस भी होगा 4.5 वर्ष का, छात्र देंगे सैमेस्टर वाइज परीक्षा : डॉ.डी मजूमदार

इंडियन डेंटल एसोसिएशन की दो दिवसीय कार्यशाला शुरु

लखनऊ। दंत चिकित्सा की पढ़ाई में एक रूपता होगी, एक रुपता भारत ही नही दुनिया के विभिन्न देशों के मानकों को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है। पूरी दुनिया में अब मेडिकल साइंस की पढ़ाई एक ही पैटर्न पर हो इस पर मंथन चल रहा है। ताकि भारत के शिक्षित दंत चिकित्सकों को विदेशों में और विदेशों के छात्रों को भारत में प्रैक्टिस करने या आगे की शिक्षा प्राप्त करने में दिक्कत न हो। इसके अलावा भारत में बीडीएस में सैमेस्टर वाइज परीक्षा का प्रावधान किया जा रहा है, कुल 9 सैमेस्टर उत्तीर्ण करने होंगे छात्र को, अभी तक प्रत्येक वर्ष फाइनल इयर अर्थात चार साल में चार परीक्षा पास करनी होती है। यह जानकारी शनिवार को इंडियन डेंटल एसोसिएशन की दो दिवसीय कार्यशाल का उद्घाटन करते हुए डेंटल काउंसिल आॅफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ.डी मजूमदार ने दी।

एमबीबीएस की भांति बीडीएस भी 5.5 वर्ष का

इंदिरा प्रतिष्ठान में यूपी डेंटल शो द्वारा आयोजित कार्यशाला में पहले दिन डीसीआई अध्यक्ष ने बताया कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर बीडीएस का कोर्स तैयार किया गया है, एमबीबीएस की भांति बीडीएस भी साढेÞ चार वर्ष की शिक्षा और एक वर्ष की इंटर्नशिप हो जायेगी, अर्थात 5.5 वर्ष में बीडीएस उत्तीर्ण किया जा सकेगा। हलांकि इस कोर्स में अवधि बढ़ाने का विशेष अधिकार स्टेट गवर्मेंट को होता है, बढ़ा भी सकती है। आगे उन्होंने बताया कि भारत में बीडीएस छात्रों की परीक्षा वार्षिक स्तर पर होती थी, जिसमें पैटर्न बदला जा रहा है। अब बीडीएस कोर्स को 9 सैमेस्टर में विभाजित किया जा रहा है। प्रत्येक छह माह पर एक सैमेस्टर अर्थात वर्ष में दो सैमेस्टर की परीक्षा देनी होगी छात्रों को। इतना ही नही पूरे वर्ष के कोर्स को चार विषयों में विभाजित किया जायेगा। और छात्रों के पास स्वेच्छा से किसी भी सैमेस्टर में कम से कम दो विषय का चयन कर सकते हैं, शेष दो विषय अगले सैमेस्टर में उत्तीर्ण कर सकते हैं। इससे परीक्षाओं में सभी विषय एक साथ नही पढ़ने पडेÞंगे। डॉ.मजूमदार ने बताया कि डेंटल काउंसिल ने प्रस्ताव बनाकर केन्द्र सरकार के पास भेज दिया है, सरकार द्वारा स्वीकृत मिलने के बाद लागू हो जायेगा।

डॉक्टरी की पढ़ाई में अब खेल संगीत योगा भी

कार्यशाला के आयोजन सचिव व लखनऊ के वरिष्ठ दंत चिकित्सक डॉ आशीष खरे ने कहा कि डीसीआई का यह फैसला आने वाले समय में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है। उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा है कि उच्च शिक्षा की भांति डेंटल में भी पाठ्यक्रम में आमूलचूल बदलाव आए। इसी वजह से डॉक्टरी की पढ़ाई में अब खेल संगीत योगा समेत बहुत से अन्य विधान को जोड़ा जा रहा है। एक अहम फैसला और यह भी हुआ है कि अब सरकारी और निजी कॉलेजों में जो भी सेमेस्टर की परीक्षाएं होंगी। उसमें एक ही प्रश्न पत्र होगा और ठीक परीक्षा से पहले ही उसे अभ्यर्थी को दिया जाएगा। इसके अलावा दंत चिकित्सक को इस तरह से प्रशिक्षित किया जाएगा कि वह इमरजेंसी में किसी भी बीमारी का इलाज कर घायल की मदद करने में सक्षम होगा।

एक ही बार मैं माइक्रोस्कोप से दांतों में कीड़े व बैक्टीरिया का होगा सफाया

यूपी डेंटल शो में दिल्ली के डॉ. प्रशांत भसीन ने कहा कि दांतों में कीड़े या फिर और किसी प्रकार के गंभीर संक्रमण का इलाज अब आसान हो गया है ! मरीजों को कीड़े व बैक्टीरिया के खात्मे के लिए एक या दो बार ही डॉक्टर के पास रूट कैनाल ट्रीटमेंट के लिए आना होगा अभी तक मरीजों को सात से आठ बार आरसीटी के लिए अस्पताल के चक्कर काटने पड़ रहे थे।
माइक्रोस्कोप से बेहतर आरसीटी के परिणाम देखने को मिल रहे हैं। अभी तक सामान्य मशीनों से आरसीटी की जा रही थीं। इसमें मरीज को आठ से 10 बार अस्पताल आना पड़ रहा था। अब माइक्रोस्कोप से देखकर बैक्टीरिया का पूरी तरह से खात्मा किया जा सकता है।

समय पर कराएं इलाज
केजीएमयू डॉ. रमेश भारती ने कहा कि फास्ट फूड, चॉकलेट, टॉफी समेत दूसरी वस्तुएं दांतों की सेहत के लिए भी नुकसानदेह हैं। इन वस्तुओं को खाने के बाद यदि कुल्ला या ब्रश नहीं किया तो दांतों में कीड़े लगने का खतरा बढ़ जाता है। हर तीसरे व्यक्ति के दांतों में कीड़ा लगने संबंधी परेशानी देखने को मिल रही है। इसे दूर करने के लिए आरसीटी करनी पड़ती है।

मसूढ़ों का भी इलाज
कार्यशाला के आयोजन सचिव डॉ.आशीष खरे ने बताया कि लेजर द्वारा मसूड़ों, जबान या मुंह के अंदर की सर्जरी करने से ब्लीडिंग बहुत कम होती है, और कट की अपेक्षा जल्दी ठीक हो जाता है। इसके अलावा दांत टुटने पर , ई मैक्स या जरकोनिया के दांत लगा सकते हैं जो कि प्राकृतिक दांतों की तरह होते हैं।

पेशेंट पैसफिक इंप्लांट की डिमांड बढ़ी

सरदार डेंटल कॉलेज के डॉ.गौरव सिंह ने बताया कि किसी भी दुर्घटना के बाद चेहरे की सुन्दरता को बरकरार रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है। जिसके लिए दंत सर्जनों ने आर्थोजनैथिक तकनीक द्वारा सफलता प्राप्त कर ली है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक में प्रत्येक मरीज के जबड़ों को स्कैन कर कम्प्यूटर पर लोड कर लिया जाता है और कंप्यूटर मे ही आटोमेटिक , विशेष साफ्टवेयर के सहयोग से इंप्लांट लगाया जाता है और सर्जरी उपरांत जबड़ों का आकार देख लिया जाता है। खास बात है कि इस तकनीक में मरीज के जबड़ों के साइज से ही इंप्लांट का साइज पता चल जाता है, जिसे कंपनी तैयार कर देती है और मरीज में प्रत्यारोपित किया जाता है, चेहरे की सुन्दरता प्राकृतिक रूप से पुराने आकार में ही रहती है।

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