वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग कर किसानों को दिला सकते हैं सूखे से राहत: डॉ. आशाराम
सीएम योगी के निर्देश पर आधुनिक तकनीकों के माध्यम से सूखा न्यूनीकरण हेतु सम्मेलन का किया गया आयोजन
एक दिवसीय राज्य स्तरीय सम्मेलन में प्रदेश और देश भर के प्रमुख तकनीकी संस्थान, शोध संस्थान और तकनीकी विवि के विशेषज्ञ हुए शामिल
लखनऊ, 4 मार्च: जल संवर्धन से निपटने के उपायों को सबसे पहले समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यही एक मुख्य वजह है जिस कारण सूखे से निपटना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए यह भी बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है कि कौन सी फसल को किस मौसम के अनुरूप और किस स्थान के अनुरूप लगाया जाए, जिससे किसान को लाभ मिल सके। मौसम की जानकारी आज तकनीकी के माध्यम से लोगों को मिल रही है, लेकिन किसानों तक वह कैसे सुलभ माध्यम से पहुंचे, इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। ये बातें एनडीएमए के सदस्य कृष्ण एस वत्स ने सोमवार को आईजीपी में राहत विभाग की ओर से आयोजित ”आधुनिक तकनीकों के माध्यम से सूखा न्यूनीकरण” विषय पर एक दिवसीय सम्मेलन में कही गईं। सम्मेलन में कई विशेषज्ञ शामिल हुए, जिन्होंने तकनीकी के माध्यम से कैसे प्रदेश सूखा नियंत्रण हो सके, इस पर अपने विचार विमर्श रखे। इससे पहले दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
तीन सत्र में सूखे से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर दिग्गजों ने किया मंथन
सम्मेलन को तीन सत्रों में विभाजित किया गया, जिसमें विशेषज्ञों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। पहले सत्र में टेक्नोलॉजी फॉर ड्रॉट मॉनीटरिंग विषय पर एनडीएमए के सदस्य कृष्णा एस वत्स, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉक्टर देब ज्योति, वैश्विक अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक, डॉ. एमएल जाट, सुहोरा टेक के सीईओ कृषानु आचार्य एमईटी लखनऊ के निदेशक, मनीष रानाल्कर व अन्य लोगों ने अपने विचार रखें। वहीं दूसरे सत्र में टेक्नोलॉजी फॉर ड्रॉट मिटीगेशन विषय पर आईसीआरआईएसएटी हैदराबाद के पीएस और क्लस्टर लीड डॉ. रमेश सिंह, आईसीएआर-सीएएफआरआई झांसी के डॉ. आशाराम और आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर देब ज्योति ने तकनीकी माध्यम से कैसे सूखे पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है इस पर चर्चा की। इसी तरह तीसरे सत्र में टेक्नोलॉजी फॉर ड्रॉट मैनेजमेंट विषय के विभिन्न पहलुओं पर मुख्यमंत्री के सलाहकार केवी राजू के नेतृत्व में बीएआईएफ के डायरेक्टर रवि राज जाधव ने अपने विचार रखे।
हममें स्वच्छ फार्मिंग और स्मार्ट एग्रीकल्चर पर देना होगा विशेष ध्यान
सम्मेलन में आईसीएआर-सीएएफआरआई झांसी के डॉ. आशाराम ने बताया कि आजकल किसानों के लिए बदलते परिवेश में बहुत कठिनाई होती जा रही है, जो समय-समय पर उन्हें चुनौती देती है। ऐसे में हम वैज्ञानिक दृष्टि से तकनीक का उपयोग करके उनकी मदद कर सकते हैं। इसके लिए हमें स्वच्छ फार्मिंग और स्मार्ट एग्रीकल्चर पर ध्यान देना पड़ेगा। इससे किसानों को तो लाभ होगा ही, साथ ही साथ सूखे से भी समय के अनुसार राहत मिलने की उम्मीद मिलेगी। उन्होंने कहा कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने भी 2014 में ही राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति लागू की और हमने भी झांसी के कई किसानों को नई तकनीकी के माध्यम से किसानी के नए-नए आयाम को भी प्रयोग में लाने के लिए उन्हें प्रेरित किया और इसी के तहत बंबू प्लांटिंग मैटेरियल यानी बांस की खेती के लिए हमसे कई किसानों की सहायता की, उन्होंने कहा कि आजकल किसानों को इसी प्रकार से नए-नए प्रयोग के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है, जिससे उन्हें भी लाभ पहुंचे और प्राकृतिक को भी कोई नुकसान ना हो। एम एन सी एफ सी के करन चौधरी ने बताया कि कृषि मंत्रालय में कई स्तर पर मॉनिटरिंग के माध्यम से हम सूखे पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें रिमोट सेंसिंग डाटा, ड्राउंट मोनेट्रिंग फीमवर्क, सेटलाइट डाटा, सूखे की निगरानी के लिए भू-स्थानिक मंच, मौसम में सूखे की स्थिति पर नजर रखकर हम किसानों तक संदेश पहुंचाने, उन्हें जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे जनहानि से बचा जा सके।
स्पाइनलेस कैक्टस – 5 एफ के माध्यम से किसानों को किया जा रहा जागरूक
बीएआईएफ के डायरेक्टर रवि राज जाधव ने योगी सरकार द्वारा चलाए जा रहे तमाम प्रोग्राम के तहत लोगों को मिलने वाली राहत के बारे में बताया कि कैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए स्पाइनलेस कैक्टस – 5 एफ के माध्यम से, अवेयरनस प्रोग्राम, किसानों को ट्रेनिंग द्वारा जागरूक कर रहे हैं। हम यह भी प्रयास कर रहे हैं कि कैसे किसान पशुपालन में आगे बढ़ें। उन्होंने यह भी बताया कि इन प्रोग्राम में महिलाओं को भी शामिल किया जा रहा है, जिससे योगी सरकार की इस पहल को हम जमीन स्तर पर ला सकें। राहत आयुक्त जीएस नवीन कुमार ने कार्यक्रम के अंत में लोगों को संबोधित करते हुए बताया कि कार्यक्रम का यह विषय इसीलिए चुना गया जिससे यहां पर आए सभी लोगों और कर्मचारियों में आने वाले समय में तकनीकी दृष्टिकोण से सोचने की क्षमता विकसित हो सके। उन्होंने कहा की ऐसे ही प्रयासों के माध्यम से आने वाले समय में हम सूखा न्यूनीकरण पर नियंत्रण प्राप्त कर सकेंगे। कुछ समय पहले अपने प्रयोगों पर बात करते हुए राहत आयुक्त ने बताया की बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा में जब वह कार्यरत थे तब वहां पर तिल के उत्पादन की उन्होंने कुछ ही क्षेत्र में शुरुआत की थी जो कि अब वृहद स्तर पर हो गया है और वहां पर इसका पूरी बेल्ट तैयार हो गयी है। उन्होंने यह भी बताया कि बाद में अन्य जगहों पर केले की खेती की शुरुआत की, जो कि अब वृहद स्तर पर किसान कर रहे हैं। उन्होंने टीडब्ल्यूएस अर्थात टेलिमेटरी मदर स्टेशन के माध्यम से हर तहसील और ब्लॉक स्तर पर तकनीकी उपयोगिता पर जोर देते हुए कहा कि आने वाले समय में हमें सूखा न्यूनीकरण के इस सम्मेलन को सार्थक बनाना है।
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. केवी राजू, आईआईटी कानपुर के प्रो. डॉ. देब ज्योति, एनडीएमए के सदस्य कृष्ण एस वत्स, यूपीएसडीएमए के वीसी लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी, मौसम विभाग लखनऊ के निदेशक डॉ. मनीष रानाल्कर, विशेष सचिव राजस्व राम केवल, और राहत विभाग की परियोजना निदेशक अदिति उमराव मौजूद रहीं।