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योगी को जीत में मिला मायावती का साथ

लखनऊ। उप्र में योगी आदित्यनाथ की पुन: वापसी करते ही, भाजपा पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल शुरु होते ही, परिणामों को लेकर समीक्षा चर्चाएं शुरु हो गर्इं हैं। चर्चाओं में, यूं तो भाजपा की जीत के कई कारण गिनाये जा रहे हैं जिनमें मुफ्त राशन और सख्त प्रशासन प्रमुख है। लेकिन चुनाव से पहले और चुनावों के दौरान जिस तरह का माहौल समाजवादी पार्टी का बना था वह ईवीएम खुलने पर नहीं दिखा। हालांकि सपा ने पूर्व से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 127 सीटें प्राप्त की हैं, मगर सत्ता उनसे दूर ही रही। वहीं विचारनीय विषय है, भाजपा की जीत में एक तथ्य सबसे महत्वपूर्ण है और वह है बहुजन समाज पार्टी। बसपा का भाजपा को अघोषित साथ मिला। जिसके कारण भाजपा की बल्ले-बल्ले हुई और सपा के हाथ से सत्ता फिसल गयी।

ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे

                    इस चर्चा की गहराई में गौर किया जाये तो मिलता है कि बसपा ने उप्र विधानसभा की 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे। इनमें 91 मुस्लिम बहुल, 15 यादव बहुल्य सीटें थीं। सपा के रणनीतिकार इन सीटों को अपनी झोली में आता साफ देख रहे थे। लेकिन इनमें अधिकांश पर भाजपा ने बाजी मार ली। बसपा का हिन्दू दलित वोट बैंक भी बिना आवाज किए भाजपा के पाले में जा खड़ा हुआ। तभी तो इस चुनाव में भाजपा को करीब 42 फीसदी के आसपास वोट मिले हैं। जबकि उसे पिछली बार 39 फीसदी वोट मिले थे। यानि इस बार तीन फीसदी का इजाफा भाजपा के मत प्रतिशत में हुआ है। वहीं बसपा को करीब 12.7 फिसदी वोट मिलता दिख रहा है। जो कि पिछली बार से दस फीसदी कम है। साफ है कि बसपा का कोर वोट बैंक भाजपा की ओर मुड़ गया। उधर समाजवादी पार्टी अपनी मुस्लिम परस्त छवि को तोड़ नहीं पायी। साथ ही वह सोशल इंजीनियरिंग में भी फेल हुई। 

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