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बहुतायत एंटीबायोटिक दवाएं ही हैं सेप्सिस का मुख्य कारण : प्रो.वेद प्रकाश


लाइलाज न होने दे संक्रमण को
विश्व सेप्सिस दिवस पर जागरूकता संगोष्ठी

लखनऊ। संक्रमण की अत्यंत गंभीर अवस्था, जब एंटीबायोटिक दवाएं लाभ न करें,नुकसान करने लगे। शरीर के अंग फेल होने लगते हैं। अंतत: मरीजों की मृत्यु हो जाती है। इस स्थिति से बचा जा सकता है,अगर चिकित्सक समय रहते, मरीजों को सुरक्षित एंटीबायोटिक दवाएं ही जाएं और सरकार को इसे इमरजेंसी समस्या की तरह समाधान खोजना चाहिए। यह विचार सोमवार को विश्व सेप्सिस दिवस के अवसर पर केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन वि भाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी में विभागाध्यक्ष प्रो.वेद प्रकाश ने रखे।

शताब्दी अस्पताल फेज 2 के दूसरी मंजिल पर स भागार में आयोजित संगोष्ठी में प्रो.वेद ने कहा कि हार्ट व कैंसर के बाद, सेप्सिस मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण हैं। अगर, इस विषय पर गंभीरता से नही विचार किया गया और समय रहते आवश्यक कदम नही उठाए गये तो, वर्ष 2050 में करीब 1 करोड़ मरीजों की मृत्यु केवल सेप्सिस से होगी। उन्होंने बताया कि संक्रमण जीवाणु जनित होता है, और मरीज सेप्सिस की ओर फेफड़े के संक्रमण के माध्यम से बढ़ता है। लगभर 25 प्रतिशत सेप्सिस के मामले फेफडेÞ के संक्रमण से होते हैं।

एनेस्थेसिया विभाग के डॉ.विपिन सिंह ने बताया कि एंटीबायोटिक के धड़ाधड़ प्रयोग से छोटे जीवाणुओं में दवा के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है। एंटीबायोटिक दवाएं लाभ की जगह नुकसान पहुंचाने लगती हैं। उन्होंने बताया कि आईसीयू के मरीजों को दी जाने वाली तमाम दवाओं की वजह से 40 प्रतिशत मरीजों में सेप्सिस हो जाता है।
सेप्सिस विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो.राजेन्द्र प्रसाद ने किया, केजीएमयू कुलपति ले.ज. डॉ.बिपिन पुरी बतौर मुख्य अतिथि वर्चुअल संबोधित किया। इसके अलावा लोहिया संस्थान के प्रो.दीपक मालवीय, पीजीआई के डॉ.आरके सिंह व डॉ.प्रशांत गुप्ता, केजीएमयू की माइक्रोबायोलॉजी प्रमुख डॉ.अमिता जैन व डॉ.शीतल वर्मा, डॉ.आरएएस कुशवाहा, डॉ.हैदर अब्बास, डॉ.केके सालवानी व डॉ.अविनाश अग्रवाल ने सेप्सिस से बचाव के लिए अपने विचार प्रस्तुत किये।

जागरूकता संगोष्ठी में विचार

1. हृदय रोग और कैंसर के बाद सेप्सिस मौत का तीसरा प्रमुख कारण है।

2. सबसे आम कारण एक जीवाणु संक्रमण है। संक्रमण की सबसे आम साइट जो सेप्सिस की ओर ले जाती है, वह है फेफड़े, जो सेप्सिस के लगभग 35% मामलों में योगदान देता है। इसके बाद मूत्र पथ का संक्रमण होता है जो लगभग 25% मामलों में योगदान देता है। संक्रमण के अन्य स्रोत आंत में संक्रमण और त्वचा में संक्रमण हो सकते हैं।

3. एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप- एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित उपयोग से सूक्ष्मजीवों में प्रतिरोध होता है जो बहु-दवा प्रतिरोधी संक्रमण का कारण बनता है। एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक दुनिया भर में लगभग 1 करोड़ लोग एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण मर जाएंगे, जिससे यह कैंसर से भी घातक हो जाएगा। एंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया बदल जाते हैं और एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी बन जाते हैं जिनका उपयोग उनके कारण होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है।

4. एक अध्ययन के अनुसार, आईसीयू में लगभग 40% संक्रमणों का योगदान अब बहुऔषध प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जा रहा है।

5. सीडीसी के हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, अस्पतालों में निमोनिया और मूत्र पथ के संक्रमण जैसी चुनिंदा घटनाओं के लिए निर्धारित एंटीबायोटिक के आधे से अधिक अनुशंसित दिशानिर्देशों के अनुसार नहीं थे।

. प्रतिजैविक प्रतिरोध के कारण क्या हैं –

• एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक नुस्खे

• मरीज़ अपना इलाज पूरा नहीं कर रहे हैं

• पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं का अति प्रयोग

• अस्पतालों और क्लीनिकों में खराब संक्रमण नियंत्रण

• स्वच्छता की कमी और खराब स्वच्छता

7. एंटीबायोटिक प्रबंधन के मुख्य तत्वों में शामिल हैं-

I. संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण को बढ़ाना

II. संक्रमण के स्रोत को नियंत्रित करना

III. एंटीबायोटिक्स निर्धारित करना जब उन्हें वास्तव में आवश्यकता होती है

IV पर्याप्त खुराक के साथ उपयुक्त एंटीबायोटिक्स निर्धारित करना

V. साक्ष्य के आधार पर एंटीबायोटिक दवाओं की सबसे कम अवधि का उपयोग करना

VI. संस्कृति के परिणाम उपलब्ध होने पर उपचार का पुनर्मूल्यांकन करना

VII. रोगाणुरोधी प्रतिरोध की निगरानी और अस्पताल द्वारा प्राप्त संक्रमण और एंटीबायोटिक खपत की निगरानी

VIII. शिक्षित कर्मचारी

IX. एक अंतःविषय दृष्टिकोण का समर्थन करना

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