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अपोलो में हुआ तीसरा सफल लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट

लखनऊ । अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, दिन पर दिन चिकित्सा के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। अल्प अवधि के कार्यकाल के दौरान ही तीसरा लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट करने के बाद प्रदेश का पहला संस्थान बन गया है। अस्पताल में अल्ट्रा मॉडर्न मेडिकल टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर 37 वर्षीय लिवर के मरीज की लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट के जरिये जान बचाई गई, इस व्यक्ति को लिवर डोनेट उसकी पत्नी ने किया था।

लगभंग 16 से 17 घंटे के परिश्रम के बाद ट्रांसप्लांट किया

लीवर ट्रांसप्लांट एंड एचपीबी सर्जरीज के कंसलटेंट डॉ आशीष मिश्रा ने बताया कि गंभीर हालत में पहुंचे 37 वर्षीय युवक के पेट में पानी भरा था और डायबिटीज भी थी। गंभीर हालत की वजह से कई बार विभिन्न अस्पतालों की आइसीयू में भी भर्ती रहे और मौत के मुंह से बाहर आए थे। लिवर खराब था,लिहाजा खाना -पीना दूभर था। मरीज व उसके घर वालों से लिविंग डोनर से ट्रांसप्लांट की सलाह दी, 32 वर्षीय पत्नी तैयार हो गई। सर्जरी प्लान कर, डोनर के लिवर का 60 से 65 प्रतिशत हिस्सा लिया गया। मरीज में लगभंग 16 से 17 घंटे के परिश्रम के बाद ट्रांसप्लांट किया गया। दूसरी तरफ डोनर की भी सर्जरी लगभग 7 से 8 घंटे तक चली। सर्जरी के बाद डोनर और रेसीपियंट दोनों स्वस्थ्य है और शीर्घ ही डिस्चार्ज होंगे। सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डॉ वलीउल्लाह ने कहा, लिवर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया कैडेवर या लिविंग डोनर से लिवर लेकर किया जाता है। जीवित व्यक्ति के लीवर का लगभग दो-तिहाई हिस्सा मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है। डोनर का लिवर केवल 3-6 सप्ताह में अपने मूल आकार में वापस आ जाता है। इसका दाता के शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। अस्पताल के सीईओ और एमडी, डॉ मयंक सोमानी ने कहा, अस्पातल में न केवल लखनऊ बल्कि पड़ोसी राज्यों से भी प्रत्यारोपण कर रहा है और अपोलोमेडिक्स अस्पताल मरीजों को एक छत के नीचे अत्याधुनिक चिकित्सा तकनीक से लैस अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कर रहा है ।

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