मरीज को लेकर अच्छे अस्पताल भागिए तुरंत
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स्ट्रोक पड़ने पर 24 घंटे महत्वपूर्ण, इंटरवेंशनल तकनीक से
लखनऊ। मस्तिष्क में रक्त ले जाने वाली धमनियों में रुकावट या रिसाव होने पर मस्तिष्क में खून के थक्का जम जाता हैं जिसे एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक कहा जाता है। खून के थक्के से धमनियों पर दबाव पड़ता है और मस्तिष्क में रक्त आपूर्ति बाधित हो जाती है और रक्त आपूर्ति के अभाव में संबन्धित अंग लकवा ग्रस्त हो जाता है। बड़ा स्ट्रोक पड़ने पर मृत्यु भी हो सकती है। अगर, शुरुआती 24 घंटों में मैकेनिकल थ्रोम्बोक्टॉमी (इंटरवेंशनल)तकनीक से उपचार मिल जाये तो आधे से ज्यादा (लगभग 59.4 प्रतिशत) मरीजों में ठीक किया जा सकता है। यह तकनीक मिनिमली इवेंसिव और सुरक्षित तकनीक है।
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रुकावट के कारण मस्तिष्क के हिस्से में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है
मेदांता अस्पताल के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट, डॉ रोहित अग्रवाल ने बताया कि स्ट्रोक विश्वभर में मृत्यु का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। मस्तिष्क की प्रमुख धमनियों में से किसी में रुकावट के कारण मस्तिष्क के बड़े हिस्से में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, इसे एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक के रूप में जाना जाता है। एक तिहाई से अधिक मरीजों में लार्ज वेसल आॅक्ल्युजन्स (अत्यधिक रक्त रिसाव से बड़ा थक्का)होते हैं, जिसके कारण उपचार के बाद भी बेहतर परिणाम प्राप्त नहीं होते थे।
लाइलाज नही है मस्तिष्क का स्ट्रोक, शुरुआती 24 घंटे में सफलता
लेकिन इंटरवेंशंस तकनीक ने धारणा बदल दी है और एक्यूट स्ट्रोक के मामलों में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से मरीजों का जीवन व लकवा ग्रस्त से बचाना संभव हो चुका है। तकनीक से सफलता मिल रही है। इस तकनीक में मरीज की धमनियों से थक्का निकालने के लिए हाथ की कलाई या उरूमूल क्षेत्र में छोटा चीरा लगाकर विशेष उपकरणों से धमनी तक पहुंचा जाता है। और थक्के को बाहर निकाल लिया जाता है। डॉ.अग्रवाल ने बताया कि स्ट्रोक के अधिकांश मरीजों में थक्का छोटा होता है। जिसे समय पर मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी तकनीक से उपचारित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पहले शुरुआती 6 घंटों में तकनीक अपनाने पर सफलता मिलती थी, मगर वर्तमान में अत्याधुनिक तकनीक से शुरुआती 24 घंटे में भी यह सफलता प्राप्त हो रही है।