सपा,रालोद व बीएसपी दलों के प्रत्याशियों को सिंबल तो मिला, पर अपने नेता का संबल नहीं
-सपा, रालोद व बसपा सुप्रीमो ने चुनाव प्रचार से किया किनारा
लखनऊ
। बड़े-बड़े दावों के साथ उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में टिकट वितरण करने वाली समाजवादी पार्टी(सपा), राष्ट्रीय लोकदल(रालोद) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) के आला नेता दिलचस्पी नहीं दिखा रहें हैं। बड़े नेताओं की उदासीनता का शिकार पार्टी प्रत्याशी हो रहें हैं। गैर भाजपा दलों के प्रत्याशियों को पार्टी का सिंबल तो मिला है मगर अपने ही नेता का संबल नहीं मिल रहा है।
बसपा प्रमुख मायावती ने, मुस्लिम कार्ड चलते हुए निकाय चुनाव में 17 मेयर पदों के एवज में 11 प्रत्याशी मुस्लिम दिए हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी तो उतार दिए। लेकिन उन्हें जिताने के लिए बसपा प्रमुख ने एक भी जनसभा नहीं की। उल्टे कर्नाटक में सभा करने जरूर गईं। हालांकि, बसपा प्रमुख ने प्रचार के लिए न निकलने का फैसला उन्होंने टिकट वितरण के बाद ही कर दिया था। इसके चलते पार्टी के अधिकृत प्रत्श्यशी पूरे चुनाव के दौरान निराश रहे।
इसी प्रकार सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का भी रूझान भी निकाय चुनाव में कम दिखा। सपा नेतृत्व का मानना है कि स्थानीय चुनाव हैं, स्थानीय मुद्दों पर लड़े जा रहें हैं, इसलिए राष्ट्रीय नेतृत्व को आगे आने की जरूरत नहीं है। जबकि बसपा प्रमुख की तरह अखिलेश भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए चले गए। हालांकि, सपा के शिवपाल यादव, प्रचार के लिए पश्चिम उप्र. के दौरे पर हैं। पर वह मैनपुरी की उन्हीं सीटों पर गए हैं, जहां उनकी प्रतिष्ठा जुड़ी है। बाकी प्रत्याशी मन मसोस कर रह गए।
सपा के साथ गठबन्धन कर पश्चिम उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में उतरने वाले रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जंयत चौधरी ने भी प्रचार करने से मना कर दिया। जिसके बाद प्रत्याशी, सिंबल लेकर अपने दम पर चुनाव लड़ने को मजबूर हैं। यह स्थिति विषम है क्योंकि सामने सत्ताधारी पार्टी के प्रत्याशी के समर्थन में पूरे दम खम के साथ मुख्यमंत्री समेत पूरा मंत्रिमंडल और संगठन जुटा है।
हालांकि, नगर पालिका (लोनी) सीट पर गठबंधन की प्रत्याशी रंजीता मनोज धामा के समर्थन में खतौली विधायक मदन भैया और पूर्व विधायक लोनी जाकिर अली ने रविवार को जनसंपर्क किया है। मगर आला नेताओं की सभाएं न होने का प्रभाव कहीं परिणाम पर न पड़ जाए, इस पर अभी से अटकलें लगना शुरू हो गई हैं।