मेडिकोलीगल केसों में कानूनी अड़चनों को खत्म करने को औषधीय ज्ञान जरूरी:डीके ठाकुर
लखनऊ। समय के साथ मेडिकोलीगल मामलों में चिकित्सकों की सतर्कताएं भी बढ़ चुकी हैं। भारत में, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र नियमों, विनियमों, कानूनों और नैतिक मानकों द्वारा शासित होने के बावजूद लगभग 5,200,000 चिकित्सा त्रुटियां हर साल होती हैं। उक्त विषय पर चिकित्सकों एवं पैरामेडिकल स्टाफ को लोहिया संस्थान में प्रशिक्षित किया गया। उन्हें कानूनों के व्यावहारिक अनुप्रयोग से जुड़े स्वास्थ्य देखभाल, विधायिका में सुधार, प्रवर्तन, निर्णय और सुधार में लागू कानूनों को प्रकाश में लाने का प्रयास किया और दर्शकों को कानूनी रूप से मजबूत चिकित्सा पद्धतियों के विषय में जागरूक किया गया।
मेडिकोलेगल मामलों की बढ़ती संख्या ने अस्पतालों और स्वास्थ्य कर्मियों की चुनौती बढ़ा दी
लोहिया संस्थान में आयोजित सीएमई में विशिष्ट अतिथि कमिश्नर डीके ठाकुर ने कहा, समय के साथ रिपोर्ट किए जा रहे मेडिकोलेगल मामलों की बढ़ती संख्या ने अस्पतालों और स्वास्थ्य कर्मियों की चुनौती बढ़ा दी हैं। चिकित्सक व पैरामेडिकल का औषधीय पहलुओं के बारे में जागरूक होना अनिवार्य है ताकि दीवानी और आपराधिक मुकदमों को कम किया जा सके और चिकित्सा देखभाल की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। सीएमई का उद्घाटन निदेशक प्रो.सोनिया नित्सानंद ने किया, प्रो.नुजहत हुसैन, प्रो.राजन भटनागर ने संबोधित किया। फोरेंसिक मेडिसिन एवं टॉक्सिकोलॉजी विभाग की डॉ. ऋचा चौधरी ने विभिन्न केसों में बरती जाने वाली सावधानियों पर इंगित किया। सीएमई में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के हितधारकों के सामने आने वाले मुद्दों, चुनौतियों को उजागर किया एवं उन्हें हल करने में और स्वास्थ्य सेवा में शामिल कानूनी पहलुओं के विभिन्न आयामों को प्रतिनिधियों को समझाने का प्रयास किया ।