क्यों पैदा होते हैं टेढ़े पैर वाले बच्चे और क्या है इलाज ?
शुरु में इलाज न लेने पर क्लब फुट बना देता है विकलांग : प्रो.अजय सिंह
लखनऊ। शिशुओं में जन्मजात पैरों के पंजे टेढ़े हो, अंदर या बाहर की मुडे होते हैं। इसे क्लब फुट कहा जाता है। अगर, जन्म के कुछ समय बाद ही ‘‘ पोंसेटी ’’ तकनीक से इलाज शुरु कर दिया जाये तो बच्चे को सामान्य बच्चों की तरह बनाया जा सकता है। अन्यथा 10-12 साल के बाद पैर सीधा होना कठिन हो जाता है, अधिकांशतया सर्जरी की जरूरत पड़ती है मगर सर्जरी भी गांरटीड इलाज नही है। यह जानकारी क्लब फुट विषयक कार्यशाला में, संयोजक व केजीएमयू में पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक विभगाध्यक्ष प्रो. अजय सिंह ने दी।
केजीएमयू के शताब्दी फेज टू के 8 वें तल पर सभागार में उप्र आर्थोपैडिक एसोसिएशन (यूपीओए) द्वारा आयोजित कार्यशाला में संयोजक प्रो.सिंह ने बताया कि बढ़ती आबादी के साथ ही क्लब फुट के बच्चों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। मगर, जागरूकता के अभाव में अभिवावक इलाज में देरी करते हैं जिससे पैदाइशी समस्या विकलांगता का रुप ले लेती है। उन्होंने बताया कि इस पैदाइशी बीमारी के स्पष्ट कारणों की जानकारी नही है, मगर इलाज से ठीक होना संभव है।
पोंसेटी तकनीक क्या है ?
प्रो.अजय ने बताया कि पोंसेटी तकनीक में प्रशिक्षण प्राप्त हड्डी रोग विशेषज्ञ द्वारा बच्चों के टेढ़े पैर को धीरे-धीरे सीधा किया जाता है, एक बार में थोड़ा सीधा कर, सीरियल करेक्टिव प्लास्टर कास्ट चढ़ा दिया जाता है। हर डेढ़ हफ्ते बाद, पैरा को पहले से ज्यादा सीधा कर प्लास्टर चढ़ाते हैं। इस प्रकार 4 से 6 बाद, किसी – किसी में 8 बार करेक्टिव प्लास्टर चढ़ाना पड़ता है। पैर सीधा हो जाता है। करीब डेढ़ से दो माह का समय लगता है। इसके बाद छोटा सा चीरा लगाकर आॅपरेशन द्वारा एंगल को व्यवस्थित कर दिया जाता है। और फिर पैरों के ब्रेश या जूते बनवा कर दिये जाते हैं। जो कि अगले 3 -5 साल तक पहनना होता है। खासकर रात को सोते समय। इसके बाद पैर सामान्य स्थिति में आ जाता है और बच्चा सामान्य बच्चों की तरह दिनचर्या व्यतीत करने लगता है।
5-10 प्रतिशत को पड़ती है सर्जरी की आवश्यकता
हिन्द मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य व डीन डॉ.शकील किदवई ने बताया कि क्लब फुट के 90 प्रतिशत बच्चे, पोंसेटी तकनीक से ही ठीक हो जाते हैं। यह तकनीक प्रारंपरिक व प्राकृतिक तकनीक है। कुछ बच्चों में समस्या जटिल होती है, या 10-12 साल की उम्र से पहले इलाज नही लिया होता है। तो इन बच्चों में टेढ़ापन दूर करने के लिए सर्जरी करनी पड़ती हैं क्योंकि हड्डियां मजबूत व सख्त हो जाती हैं और पोंसेटी तकनीक से सीधा नही होता है। ऐसे में सर्जरी कर टेढ़ापन दूर किया जाता है, मगर 100 प्रतिशत सफलता या राहत की गांरटी नही होती है। सर्जरी के कुछ सालों बाद, पैरो में टेढ़ापन पुन: होने की संभावना होती है।
पैदाइशी सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों का इलाज मुश्किल
सीआईआईटी के निदेशक डॉ.मैथ्यू वर्गीस ने बताया कि 10 प्रतिशत उन बच्चों का इलाज जटिल होता है, सर्जरी करनी पड़ती है। जिनमें क्लब फुट के साथ ही न्यूरो(मानसिक) की , हाथ में भी समस्या हो आदि कई अन्य दिक्कतें होती हैं। इन बच्चों की इम्यूनिटी कमजोरी होती हैं। इनकी दिनचर्या सामान्य नही होती हैं। इसलिए इन बच्चों का पोंसेटी तकनीक से पूर्णतया इलाज नही हो पाता है, सर्जरी करनी पड़ती है, सर्जरी से टेढ़ापन दूर करने का प्रयास किया जाता है। मगर मानसिक समस्याओं के इलाज का रिस्पॉस नही मिलता है, शरीरीक सपोर्ट के अभाव में क्लब फुट की समस्या पुन: उभर आती है।
डीएनए मैपिंग से ज्ञात हो सकती है जन्म से पूर्व बीमारी
केजीएमयू के कुलपति ले.ज.डॉ.विपिन पुरी ने, कार्यशाला का उद्घाटन किया और संबोधित करते हुए कहा कि, पैदाइशी बीमारी होने के कारणों में अभिवावक के जीन की भूमिका होती है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के डीएनए में शरीर में होने वाली प्रत्येक गतिविधि व निर्माण का आकलन किया जा सकता है। अगर, बच्चे के जन्मपूर्व ही गर्भस्थ के अभिवावक मॉ-पिता दोनो अपने अपने जीन की जांच कराये तो समस्या का पता चल सकता है। उन्होंने बताया कि अगर, खानदान में किसी भी पीढ़ी में कोई क्लब फुट ग्रस्त रहा है तो उस परिवार में होने वाले शिशुओं में समस्या की संभावना बहुत रहती है। उन्होंने बताया शोध कार्य जारी है जैसे की ब्रेन में डीएनए मैपिंग की सुविधा शुरु हो जाती है डीएनए की पुष्टि होने पर, जीन में एडिटिंग किया जा सकता है।
केजीएमयू ने निशुल्क इलाज को, क्लब फुट के 1000 बच्चे चिन्हित किये, 5000 से ज्यादा प्लास्टर लग चुके
पीडिया आर्थो के प्रो.अजय सिंह ने बताया कि केजीएमयू में क्योर इंटरनेशनल इंडिया ट्रस्ट के सहयोग से क्लब फुट के इलाज का निशुल्क इलाज किया जाता है। इसके लिए विभाग में आर्थोपैडिक चिकित्सकों को करेक्टिव प्लास्टर कास्ट आदि के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। पहले चरण में संस्था द्वारा क्लब फुट ग्रस्त 1000 बच्चों को चयनित किया जा चुका है, जिन्हें निशुल्क इलाज व जूते आदि उपलब्ध कराये जायेंगे।
केजीएमयू ने लांच किया ‘‘ बाल अस्थि मित्र ’’
प्रो.अजय सिंह ने बताया कि बच्चों में हड्डी व मांसपेशियों से संबन्धित समस्त दिक्कतों के इलाज व जानकारी के लिए विभाग द्वारा बाल एक तैयार कर लांच किया गया है। जिसे किसी भी मोबाइल पर डाउनलोड किया जा सकता है। इस एप से बाल चिकित्सा मस्कुलोस्केलेटल समस्याओं के बारे में जारूकता बढ़ाई जायेगी।
मौजूद रहें दिग्गज
मुख्य अतिथि, कुलपति केजीएमयू ले.ज. डॉ.विपिन पुरी के अलावा प्रतिकुलपति , एचओडी आर्थो प्रो.विनीत शर्मा, डॉ.वेद प्रकाश, यूपी आर्थोपैडिक एसोसिएशन के यूपीओए के अध्यक्ष डॉ.आशीष कुमार , सचिव डॉ.अनूप अग्रवाल, डॉ.नजमुल हुदा, अलीगढ़ के डॉ. मजहर अब्बास आदि कई विशेषज्ञ मौजूद रहें ।