भारत मे कम बच्चे पैदा हुए फिर कैसे बढ़ गई आबादी
, क्या आबादी बढ़ने से गरीब नहीं हो जाते देश? क्या ज्यादा आबादी वाले देश में ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं? पढ़ें कुछ मिथ और उसके हकीकत…
यूनाइटेड नेशन ने भारत को दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बता दिया है. आमतौर पर भारत में बढ़ती आबादी की वजह ज्यादा बच्चों का पैदा होना माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे यानी NFHS की रिपोर्ट के मुताबिक 1992 से 2020 के दौरान भारत में प्रजनन दर 3.4 से घटकर 2 हो गई है. इसका मतलब ये हुआ कि भारत में एक महिला कभी औसतन 3 से ज्यादा बच्चे पैदा करती थी, यह संख्या अब घटकर 2 रह गई है. इसके बावजूद देश की आबादी तेजी से बढ़ी है. वहीं, UN के मुताबिक भारत में 2019 के बाद से हर साल 1.2% कम बच्चे पैदा हुए हैं.
पढ़ें भारत और दुनिया में आबादी से जुड़े 5 मिथ और उनकी हकीकत-
मिथ 1: ज्यादा आबादी वाले देश में ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं.
हकीकत: यूनाइटेड नेशन्स के मुताबिक बढ़ती जनसंख्या का मतलब ये नहीं कि ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं बल्कि इसका मतलब ये है कि पैदा हुए बच्चों को बेहतर सुविधाएं मिली हैं. इससे उनकी आयु बढ़ी है और उन्हें बड़े होने का मौका मिला. 1990 से अब तक लोगों की उम्र में 10 साल की बढ़ोतरी हुई है यानी 1990 में अगर जीवन जीने की औसत उम्र 50 साल थी तो ये अब बढ़कर 60 हो गई है. भारत में 1960 में पैदा हुए एक हजार बच्चों में 162 की मौत हो जाती थी. 2020 में पैदा हुए हजार बच्चों में सिर्फ 26 की मौत होती है. वहीं, भारत में लाइफ एक्सपेक्टेंसी 1960 में 45.22 थी जो 2020 में 70.15 हो गई यानी अब भारत में लोग ज्यादा समय के लिए जिंदा रह पाते हैं.
मिथ 2: कम बच्चे पैदा होने से देश की आबादी घटती है.
हकीकत: यूनाइटेड नेशन के मुताबिक कई देश घटते प्रजनन दर से परेशान होकर महिलाओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. जापान और साउथ कोरिया इसके उदाहरण हैं. हालांकि, कई देश ऐसे भी हैं जहां प्रजनन दर कम हुई, लेकिन बावजूद इसके उनकी आबादी बढ़ी है. UN का मानना है कि ऐसा माइग्रेशन की वजह से हुआ. कनाडा और ऑस्ट्रेलिया इसके उदाहरण हैं.
मिथ 3: आबादी बढ़ने से देश गरीब होता है.
हकीकत: आमतौर पर लोगों का ये मानना होता है कि बढ़ती आबादी की वजह से देश में गरीबी आती है. हालांकि 1960 के दशक में साउथ कोरिया और ताइवान उन देशों में शामिल थे जिनकी आबादी तेजी से बढ़ रही थी. 1960 से 1980 के बीच साउथ कोरिया की आबादी दोगुनी हुई, जबकि ताइवान की आबादी में 65% की बढ़ोतरी हुई. इसी दौरान दोनों देशों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर 6.2% और 7% हो गई. हालांकि, भारत समेत कई ऐसे देश हैं जहां ज्यादा असमानता होने से लोगों का समान विकास नहीं हो पाता.
मिथ 4: भारत और चीन जैसे देशों में ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली औरतें जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं.
हकीकत: UN का कहना है कि ज्यादातर पश्चिमी देशों के लोग ये मानते हैं कि भारत और चीन जैसे देशों में ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली महिलाएं जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं. ये बिल्कुल गलत है. इन्होंने तो दुनिया में सबसे कम प्रदूषण फैलाया और ये क्लाइमेट चेंज से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. दुनिया की 10% सबसे अमीर आबादी आधे से ज्यादा ग्रीन हाउस गैस के छोड़ने के लिए जिम्मेदार हैं. जबकि इन देशों में गरीब देशों के मुकाबले प्रजनन दर कम है. इसका मतलब ये हुआ कि केवल कम बच्चे पैदा करने से क्लाइमेट चेंज की समस्या खत्म नहीं होगी.
मिथ 5: जनसंख्या संतुलन यानी एक जनरेशन के रिप्लेसमेंट के लिए 2.1 प्रजनन दर जरूरी है.
हकीकत: आमतौर पर ये माना जाता है कि 2.1 की प्रजनन दर सबसे बेहतर है यानी अपनी लाइफ साइकिल में एक महिला को कम से कम 2.1 बच्चे पैदा करने चाहिए. UN के मुताबिक ये मानना पूरी तरह से सही नहीं है. इसकी वजह ये है कि 2.1 की प्रजनन दर एक जनरेशन को रिप्लेस करने के लिए जरूरी हो सकती है, लेकिन इसे आदर्श मापदंड नहीं कहा जा सकता है. इसका मतलब ये हुआ कि इस प्रजनन दर से केवल उन देशों में जनरेशन का रिप्लेसमेंट होगा, जिनमें कम शिशु मृत्यू दर और सेक्स अनुपात भी अच्छा है.
इस प्रजनन दर को सही मानने वाले किसी जगह की आबादी में प्रवासियों की भूमिका को ध्यान में नहीं रखते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि किसी देश में प्रजनन दर 2 से कम है और वहां काफी तादाद में प्रवासी आते हैं तो भी जनसंख्या का संतुलन बना रहेगा.