जानिए क्यों ? भिड़ गए साथ में चाय पीने वाले बड़े डॉक्टर व शिक्षक
वरिष्ठ चिकित्सकों की योग्यता और कार्यदक्षता को लेकर बड़े संस्थानों के तीन चिकित्सक गुट भिड़े
लखनऊ। चिकित्सा संस्थानों में चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 से बढ़ाकर 70 वर्ष करने का प्रस्ताव को लेकर चिकित्सकों में बड़ी बहस छिड़ चुकी है। इस बहस में संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ और डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के शिक्षकों के दो गुट आमने-सामने आये थे, मगर अब तीन गुट आपस में अपनी-अपनी दलीलें देने में जुटे हैं। मजे दार बात है कि तीन गुटों में दो गुट लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के ही हैं जो आपस में एक-दूसरे को कमतर साबित करने का प्रयास कर रहें हैं और इनकी दलीलें, संस्थान हित से चल कर व्यक्तिगत हित तक पहुंंच रही हैं। उक्त विषय पर जानिए, सभी के अपने विचार-
65 वर्ष बाद शिक्षकों को बूढ़ा,पुराना परंपरावादी, अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति में पूर्ण अयोग्य
नेशनल मेडिकल कमीशन नई दिल्ली द्वारा 65 वर्ष में सेवानिवृत्त करने के प्रस्ताव की जानकारी देते हुए सोमवार पीजीआई फैकल्टी फोरम के सचिव डॉ.संदीप साहू ने बताया कि सरकार ने शिक्षकों को जबरन ड्यूटी में बांधने का कार्य किया है। इससे युवा चिकित्सकों के आगे बढ़ने (प्रशासनिक पदों) के अवसरों पर रोक लगती है। इतना ही नहीं, बुजुर्ग चिकित्सक अत्याधुनिक तकनीकों में कम रुचि रखते हैं जबकि युवा चिकित्सक दुनिया की हर नई तकनीक को अपनाना चाहता है और नए शोध से दुनिया को नई इलाज की तकनीक देना चाहता है। सरकार के इस निर्णय से युवा चिकित्सकों का मनोबल टूटेगा और इसका प्रभाव एडवांस चिकित्सा सेवाओं और संस्थान की गुणवत्ता पर पडेगा। डॉ.साहू ने बताया कि विदेशों में वरिष्ठ चिकित्सक बिना वेतन और बिना प्रशासनिक पद के सेवाएं देते हैं जबकि भारत में एैसा नही है। इसलिए विकसित देशों के शिक्षकों से प्रदेश के शिक्षकों की तुलता उचित नही है।
पीजी सीटों की मान्यता के लिए शिक्षक की गिनती होती है न कि स्थाई या अस्थाई शिक्षक
डॉ.संदीप साहू का कहना है कि मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशियलिटी सीटों के लिए कॉलेज में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त होनी चाहिये, ये शिक्षक रेगुलेर, कॉन्ट्रेक्चुअल और मानदेय पर भी हो सकते हैं। इतना ही नहीं, पार्ट टाइम शिक्षकों को भी नजर अदांज नही किया जाता है, जो समय-समय पर आकर छात्रों को शिक्षित करते हैं। इसलिए यह बोलना कि मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशयलिटी सीटों की मान्यता के लिए शिक्षकों की सेवानिवृत्त आयु बढ़ाई जाये, दिवा स्वप्न है।
सेवानिवृत्त शिक्षकों द्वारा संचालित मेदांता समेत कई प्राइवेट अस्पताल मात दे रहें सरकारी संस्थानों को
लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के सुपर स्पेशियलिटी फैकल्टी फोरम के अध्यक्ष प्रो. एस एस राजपूत और महासचिव प्रो. ईश्वर रामधायल का कहना, बिल्कुल उलट है। उन्होंने कहा कि जो कि शिक्षक 65 वर्ष तक योग्य और अगले एक दिन बाद 65 से ज्यादा होते ही अयोग्य कैसे हो सकता है। जिस शिक्षक ने 65 वर्ष तक अपनी मेहनत व लगन से छात्रों को पढ़ाया और विभाग को दुनिया में नई ऊंचायां देता है, उसके संस्थान में बने रहने से नुकसान कैसे हो सकता है। वर्तमान में मेदांता सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल,प्रमाण है कि पीजीआइ से सेवानिवृत्त यूरोलॉजिस्ट डॉ.राकेश कपूर ने, तेजी से सफलतापूर्वक मेदांता को स्थापित कर दिया है। डॉ.धायल ने कहा कि कनिष्ठ चिकित्सकों को प्रशासनिक पदों पर आसीन होने की देर हो सकती है मगर संपूर्ण रास्ते बंद नही होते हैं।
प्रदेश सरकार को आर्थिक व्ययभार से राहत मिलेगी
डा.धायल ने कहा कि प्रदेश सरकार ने शिक्षकों की सेवानिवृत्त आयु बढ़ाने का अच्छा निर्णय किया है, क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर आने संभावना है। तीसरी लहर से निपटना भी है और बीते 2 साल से आर्थिक बोझ तले दबे हुए राजकोष को बचाना भी है। प्रदेश सरकार ने 5 साल, सेवानिवृत्त टालने से देय आर्थिक लाभ के व्ययभार से भी बचेगी सरकार।
सुपर स्पेशियलिटी विभाग के शिक्षक समर्थन कर रहें हैं : डॉ.विकास सिंह
लोहिया में सबसे पुराने, आरएमएल फैकल्टी एसोसिएशन होने का दावा करने वाले एसोसिएशन के सेके्रटरी डॉ.विकास सिंह का कहना है कि सभा चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व हमारी एसोसिएशन करती है इसलिए हमारी एसोसिएशन, सरकार के इस निर्णय का आंख बंद कर समर्थन नही करती है। इसके पीछे हमारे सुझाव हैं। जो लोग सरकार के निर्णय का सीधा समर्थन कर रहें हैं निजी स्वार्थ हो सकता है। उन्होंने बताया कि पूर्व में संस्थान केवल सुपर स्पेशियलिटी वाला था, अब मेडिकल कॉलेज बन चुका है, यहां पर सभा विभागों के स्पेशियलिस्ट हैं। सुपर स्पेशियलिटी के शिक्षकों की एसोसिएशन, नई है और अपने विभागों का ही प्रतिनिधित्व करती है।