यूं ही नही बन गए उप्र के उप-मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, जानिए क्यों बने…
बसपा की सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले में भी ब्राम्हण नेता बने थे बृजेश पाठक
लखनऊ। अटल बिहारी बाजपेई स्टेडियम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में 25 मार्च 2022 को एकाएक उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक के नाम की घोषणा होते ही बतौर ब्राम्हण चेहरा उप्र की राजनीति में नया अध्याय शुरु हो गया। नया अध्याय, क्योंकि भाजपा के पुराने कई ब्राम्हण नेताओं को दरकिनार करते हुए, नई भाजपा में मोदी-योगी की पंसद बृजेश पाठक ही बने है। ब्राम्हण चेहरा इसलिए, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी बृजेश पाठक को बतौर ब्राम्हण चेहरा बनाकर ही, अपनी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को अमली जामा पहनाया था।
मात्र 20 साल के राजनैतिक कैरियर में पहुंचे उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी पर
बृजेश पाठक को उप मुख्यमंत्री, निवर्तमान उपमुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा की जगह नियुक्त किया गया। यह पद उन्हें केवल आशीर्वाद में नही मिला है बल्कि उनकी कार्यशैली ही है जो उन्हें अन्य कई नेताओं से अलग बनाती है। और यही प्रवृत्ति उन्हें हर राजनैतिक पार्टी में हाई कमान तक पहुंचाती रही है। मात्र 20 साल के राजनैतिक कैरियर में उन्होंने देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में, उपमुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त की है।
सबसे पहले मायावती ने बनाया था ब्राम्हण नेता
गौर करें तो 25 जून 1964 को मल्लावां कस्बा, हरदोई में जन्मे बृजेश पाठक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति की एबीसीडी पढ़नी शुरु की थी,और 1989 में लविवि में उपाध्यक्ष और अगले ही वर्ष 1990 में अध्यक्ष बने। इसके बाद एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर, वकालक शुरु कर जीवन को पटरी पर लाये । इसके बाद 2002 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर अपने ही पैतृक सीट मल्लांवा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, मात्र 130 वोट से चुनाव हार गये। इस उपलब्धि को उन्होंने बतौर चुनौती स्वीकार किया और अगले ही वर्ष 2003 में बसपा में भविष्य तलाशा और 2004 में बसपा के टिकट पर उन्नाव से सांसद बन गये। यहीं से उनका कद बतौर ब्राम्हण नेता बढ़ने लगा । बसपा प्रमुख मायावती 2007 के विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला तैयार कर रही थी, बृजेश पाठक बतौर ब्राम्हण चेहरा सटीक बैठे, मायावती ने उन्हें न केवल दिल्ली सदन में बसपा का उपनेता बनाया बल्कि रिश्ते में अपने साले अरविंद त्रिपाठी उर्फ गुडडू को लखनऊ-उन्नाव से एमएलसी भी जितवा दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इन्हें फिर पुरुस्कृत किया और इनकी पत्नी नम्रता पाठक को राज्य महिला आयोग का उपाध्यक्ष, राज्य मंत्री का दर्जा नियुक्त किया। मगर, इसके बाद वर्ष 2014 में उन्नाव सीट से लोकसभा का चुनाव हार गए !
बसपा को छोड़ भाजपा का दामन
बृजेश ने प्रदेश की राजनीति की हवाओं का रुख परखा और 22 अगस्त 2016 को बसपा को छोड़कर भाजपा का दामन पकड़ लिया। अगले ही वर्ष 2017 में भाजपा के टिकट पर लखनऊ में मध्य सीट से सपा के रविदास मल्होत्रा को 5094 वोटों से पराजित कर, उप्र सदन पहुंच गये। अपनी कार्यशैली से भाजपा हाई कमान को मजबूर कर दिया कि वर्ष 21 अगस्त 2019 को योगी सरकार के विस्तार में इन्हें पहली बार मंत्रीमंडल में बतौर कैबिनेट मंत्री स्थान मिल गया। इसके बाद असल कार्यशैली कोरोना महामारी में देखने को मिली। जब समूचा देश-दुनिया में लोग जरूरतों को लेकर परेशान थे, उस समय कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक ने जो सक्रियता दिखाई, आलाकमान तक खबर पहुंच गई। क्षेत्र की आम जनता के लिए 24 घंटे हेल्प फोन लाइन शुरु कर दिया, साथ ही रोजना आवास पर जरूरतमंदों की सुनवाई करना और समय से सभी को राशन-दवा समेत अन्य जरूरतों को पूरा करने का दायित्व निभाया। भाजपा हाई कमान, ने जब अपने मंत्रियों की कार्यशैली का अवलोकन किया तो बृजेश पाठक सबसे आगे सक्रिय मिले, यही वजह है कि इन्हें ब्राम्हण नेता के रूप में उप-मुख्यमंत्रित्व पद से नवाजा गया है।