कसमंडी कला गांव को टीबी मुक्त बनाने को केजीएमयू ने लिया गोद : प्रो.वेद प्रकाश
विश्व टीबी दिवस के अवसर पर टीबी मुक्त प्रदेश बनाने की मुहीम
लखनऊ। वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाने की दिशा में केजीएमयू ने भी कदम तेजी से बढ़ा दिये हैं। राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल के निर्देशन में केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग ने, टीबी बचाव व मरीजों का इलाज करने के लिए राजधानी के ग्राम पंचायत कसमंडी कला एवं वहां के 30 टीबी मरीजों को गोद लिया है। इन टीबी मरीजों के इलाज के साथ ही गांव में समस्त बीमारियों से बचाव आदि जागरूकता व समुचित इलाज उपलब्ध कराने का कार्य पल्मोनरी विभाग ही करेगा। यह जानकारी बुधवार को विश्व टीबी दिवस के अवसर पर पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.वेद प्रकाश ने दी।
समस्त गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरु
शताब्दी अस्पताल के फेज टू स्थित पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग में पत्रकारों को संबोधित करते हुए प्रो.वेद ने बताया कि कसमंडी कला गांव के साथ ही , महिलाबाद अंतर्गत हाफिज खेड़ा की प्रधान रिंकी साहू के सहयोग से कसमंडी कला, ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले समस्त गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरु कर दी गई है। गोद लेने के बाद, इन गांवों में विभाग द्वारा शिविर लगाएं जायेंगे और टीबी संभावित या टीबी के मरीजों को शुरुआती चरण में ही पहचान कर लिया जायेगा, समुचित इलाज मिलने से मरीज तो ठीक होंगे ही, साथ ही दूसरों में फैलने से बचाया जा सकेगा।
बांझपन का कारण बन रहा है टीबी
सेवानिवृत्त पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि टीबी शरीर के किसी भी अंग मे हो सकती है। सभी के अलग अलग दुष्परिणाम हैं। उन्होंने बताया कि 60 से 80 प्रतिशत बाांझपन का मुख्य कारण टीबी बना है। क्योंकि 90 प्रतिशत जननांगों का टीबी, 15 से 40 वर्ष की आयु की महिलाओं में पाया जा रहा है। यही उम्र होती हैं गर्भधारण करने की।
टीबी 10 प्रतिशत से बढकर 30 प्रतिशत हो गया
विभाग के प्रो.आरएएस कुश्वाहा ने बताया कि जननांगों का टीबी तेजी से बढ़ रहा है। बीते वर्ष से इस वर्ष में टीबी10 प्रतिशत से बढकर 30 प्रतिशत हो गया है। बच्चों में टीबी होने से उनके शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि टीबी मरीजों की सबसे बड़ी समस्या है कि पूरा इलाज नही करवाते हैं, आराम मिलने पर लापरवाही शुरु कर देते हैं जबकि सामान्यतया टीबी का इलाज 6 से 8 माह चलता है,मगर एमडीआर टीबी का 2 साल चलता है। शुरुआती टीबी की दवा बीच -बीच में छोंड़ने पर ही मरीज एमडीआर श्रेणी में पहुंच जाता है। इसलिए इलाज में लापरवाही न बरते हैं अन्यता दो साल दवा खानी पडेÞंगी।