फिजियोथेरेपी से स्ट्रोक मरीजों में बोलने की समस्या भी होती है खत्म : डॉ.संतोष उपाध्याय
विश्व स्ट्रोक दिवस पर निशुल्क परामर्श शिविर संपन्न
लखनऊ। स्ट्रोक पड़ने के बाद, अगर शुरुआती 3 से 6 माह में नई तकनीक व अत्याधुनिक उपकरणों द्वारा उचित फिजियोथेरेपी उपलब्ध हो जाये तो मरीज में कोई विकलांगता की संभावना अत्यंत खत्म हो जाती है। इसी लिए स्ट्रोक पड़ने के बाद से 3 से 6 माह को गोल्डन आवर कहा जाता है, इस दौर में मरीज में रिकवरी बहुत तेज होती है। इसके बाद उम्र व समय के साथ रिकवरी कम होती जाती है। यह बात शुक्रवार को निशुल्क परामर्श शिविर में डॉ.संतोष उपाध्याय ने, मरीजों को दी है।
इलेक्ट्रिकल करेंटस का उपयोग करके मांसपेशियों को एक्टीवेट करती है
एक्सट्रा सुपर स्पेशियलिटी फिजियोथेरेपी सेंटर, ईश्वार पुरी इंदिरानगर में , चीफ कंसलटेंट डॉ.संतोष ने बताया कि स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन हेतु नवीनतम तकनीक, मशीनों और मैनुअल तकनीक के द्वारा मरीजों के जीवन में समान्य बनाया जा सकता है। इसके लिए विशेषज्ञ फिजियोथेरेपी और आधुनिक उपकरणों की आवकश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि उनकी टीम में डॉ.पूनम वर्मा, डॉ.सना हैं जो कि इलेक्ट्रिकल करेंटस का उपयोग करके मांसपेशियों को एक्टीवेट करती है ताकि मांसपेशियों को फक्शनल बनाया जाता है।
एक्सट्रा सुपर स्पेशलिटी फिजियोथेरेपी सेंटर संचालिका और शिविर आयोजक डॉ.अकांक्षा उपाध्याय ने बताया कि स्ट्रोक के मरीजों में शरीर का आधा हिस्या या कोई अंग लकवा ग्रस्त हो जाता है। जिसका इलाज, फिजियोथेरेपी ही है। अमूमन लोग जागरूकता के अभाव में घर पर ठीक होने का इंतजार करते हैं, लिहाजा समस्या समय के साथ स्थाई हो जाती है। उन्होंने बताया कि शिविर में कई दर्जन बुजुर्ग मरीज पहुंचे, जिनकी दैनिक दिनचर्या प्रभावित थी, फिजियोथेरेपी का परामर्श दिया गया, साथ ही अवगत कराया गया कि कुछ समय पश्चात अंग कार्य करना शुरु कर सकते हैं।